Thursday, September 18, 2008

भगवान से चैट

भगवान: वत्स! तुमने मुझे बुलाया?
मैं: बुलाया? तुम्हें? कौन हो तुम?
भगवान: मैं भगवान हूँ। मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुन ली, इसलिए मैंने सोचा तुमसे चैट कर लूँ।
मैं: हाँ मैं नित्य प्रार्थना करता हूँ। मुझे अच्छा लगता है। बचपन में माँ के साथ मिलकर हम सब नित्य प्रार्थना करते थे। बचपने की आदत व्यस्क होने तक साथ रही। साथ में माँ और बहनों के साथ बिताए बचपन के दिनों की याद ताज़ा हो जाती है। वैसे इस समय मैं बहुत व्यस्त हूँ, कुछ काम कर रहा हूँ जो बहुत ही पेचीदा है।
भगवान: तुम किस कार्य में व्यस्त हो? नन्हीं चींटियाँ भी हरदम व्यस्त रहती हैं।
मैं: समझ में नहीं आता पर कभी भी खाली समय नहीं मिलता। जीवन बहुत दुष्कर व भाग-दौड़ वाला हो गया है। हर समय जल्दी मची रहती है।
भगवान: सक्रियता तुम्हें व्यस्त रखती है पर उत्पादकता से परिणाम मिलता है। सक्रियता समय लेती है पर उत्पादकता इसी समय को स्वतंत्र करती है।
मैं: मैं समझ रहा हूँ प्रभु, पर मैं अभी भी भ्रमित हूँ। वैसे मैं आपको चैट पर देखकर विस्मित हूँ और मुझसे सम्बोधित है।
भगवान: वत्स, मैं तुम्हारा समय के साथ का संताप मिटाना चाहता था, तुम्हें सही मार्ग-दर्शन देकर इस अंर्तजाल के युग में , मैं तुम तक तुम्हारे प्रिय माध्यम से पहुँचा हूँ।
मैं: प्रभु, कृपया बताएँ, जीवन इतना विकट, इतना जटिल क्यों हो गया है?
भगवान: जीवन का विश्लेषण बन्द करो; बस जीवन जियो! जीवन का विश्लेषण ही इसे जटिल बना देता है।
मैं: क्यों हम हर पल चिंता में डूबे रहते हैं?
भगवान: तुम्हारा आज वह कल है जिसकी चिंता तुमने परसों की थीं।
तुम इसलिए चिंतित हो क्योंकि तुम विश्लेषण में लगे हो। चिंता करना तुम्हारी आदत हो गई है, इसलिए तुम्हें कभी सच्चे आनन्द की अनुभूति नहीं होती।
मैं: पर हम चिंता करना कैसे छोड़े जब सब तरफ इतनी अनिश्चितता
फैली हुई है।
भगवान: अनिश्चितता तो अटल है, अवश्यम्भावी है पर चिंता करना ऐच्छिक , वैकल्पिक है।
मैं: किंतु इसी अनिश्चितता के कारण कितना दुख है, कितनी वेदना है।
भगवान: वेदना और दुख तो अटल है परंतु पीड़ित होना वैकल्पिक है।
मैं: अगर पीड़ित होना वैकल्पिक है फिर भी लोग क्यों पीड़ित हैं। हमेशा हर कहीं सिर्फ पीड़ा ही दिखती है। सुख तो जैसे इस संसार से उठ गया है।
भगवान: हीरा बिना तराशे कभी अपनी आभा नहीं बिखेर सकता। सोना आग में जलकर ही कुन्दन हो जाता है। अच्छे लोग परीक्षा देते हैं पर पीड़ित नहीं होते। परीक्षाओं से गुज़र कर उनका जीवन अधिक अच्छा होता है न कि कटु होता है।
मैं: आप यह कहना चाहते हैं कि ऐसा अनुभव उत्तम है?
भगवान: हर तरह से , अनुभव एक कठोर गुरु के जैसा होता है। हर अनुभव पहले परीक्षा लेता है फिर सीख देता है।
मैं: फिर भी प्रभु, क्या यह अनिवार्य है कि हमें ऐसी परीक्षाएँ देनी ही पड़े? हम चिंतामुक्त नहीं रह सकते क्या?
भगवान: जीवन की कठिनाइयाँ उद्देश्यपूर्ण होती हैं। हर विकटता हमें नया पाठ पढ़ाकर हमारी मानसिक शक्ति को और सुदृढ़ बनाती है। इच्छा शक्ति बाधाओं और
सहनशीलता से और अधिक विकसित होती हैं न कि जब जीवन में कोई व्याधि या कठिनाई न हो।
मैं: स्पष्ट रूप से कहूँ कि इतनी सारी विपदाओं के बीच समझ नहीं आता
हम किस ओर जा रहे हैं।
भगवान: अगर तुम सिर्फ बाहरी तौर पर देखोगे तो तुम्हें यह कभी भी ज्ञान न होगा कि तुम किस और अग्रसर हो? अपने अन्दर झाँक कर देखो, फिर बाहर से अपनी इच्छाओं को फिर तुम्हें ज्ञात होगा ,तुम जाग जाओगे। चक्षु सिर्फ देखते हैं। हृदय अंतर्दृष्टि और परिज्ञान दिखाता है।
मैं: कभी कभी तीव्रगति से सफल न होना दुखदायी लगता है। सही दिशा में न जाने से भी अधिक ! प्रभु बताएँ क्या करूँ?
भगवान: सफलता का मापदंड दूसरे लोग निश्चित करते हैं और इसके अलावा सफलता की परिभाषा हर व्यक्ति के लिए भिन्न होती है परंतु संतोष का
मापदंड खुद तुम्हें तय करना है, इसकी परिभाषा भी तुम्हीं ने करनी है। सुमार्ग आगे है यह जानना ज़्यादा संतोषजनक है या बिना जाने आगे बढ़ना , यह तुम्हें तय करना है।
मैं: भगवन, कठिन समय में, व्याकुलताओं में, कैसे अपने को प्रेरित रखें?
भगवान: हमेशा इस बात पर दृष्टि रखो कि तुम जीवन मार्ग पर कितनी
दूर तक आए हो न कि अभी कितनी दूर अभी और जाना है। हर पल इसी
में संतोष करो जो तुम्हारे पास है न कि इस बात का संताप करो कि क्या नहीं है।
मैं: प्रभु आपको मनुष्य की कौन सी बात विस्मित करती है?
भगवान: जब मनुष्य पीड़ा में होता है, वह हमेशा आक्रोश से भरा रहता है और पूछता है, "मैं ही क्यों?" परंतु जब यही मनुष्य सम्पन्न होता है, सांसारिक सुख की भरमार होती है, सफलता उसके चरण चूमती है वह कभी यह नहीं कहता, "मैं ही क्यों?" हर मनुष्य यह चाहता है कि सत्य उसके साथ हो पर कितने लोग ऐसे हैं जो सत्य के साथ हैं!
मैं: कई बार मैं अपने आप से यह प्रश्न करता हूँ, "मैं कौन हूँ? मैं यहाँ क्यों हूँ?" मेरे प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं मिलता।
भगवान: यह मत देखो कि तुम कौन हो, पर इस बात का चिंतन करो कि
तुम क्या बनना चाहते हो। यह जानना त्याग दो कि तुम्हारा यहाँ होने का उद्देश्य क्या है; उस उद्देश्य को जन्म दो। जीवन किसी अविष्कार का क्रम नहीं, परंतु एक रचना क्रम है।
मैं: प्रभु बताएँ जीवन से मुझे सही अर्थ कैसे मिल सकता है?
भगवान: अपने भूत को बिना किसी संताप के याद रखो और वर्तमान को दृड़ निश्चयी हो कर सम्भालो और भविष्य का बिना किसी भय से स्वागत करो।
मैं: प्रभु एक अंतिम प्रश्न , कभी ऐसा लगता है कि मेरी प्रार्थनाएँ मिथ्या हो जाती हैं, जिनका कोई उत्तर नहीं मिलता।
भगवान: कोई भी प्रार्थना उत्तरहीन नहीं होती पर हाँ कई बार उत्तर ही
'नहीं" होता है।
मैं: प्रभु आपका कोटि कोटि धन्यवाद, इस वार्ता के लिए। मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ कि नव वर्ष के आगमन पर मैं अपने आप में एक नई प्रेरणा का संचार अनुभव कर रहा हूँ।
भगवान: भय त्याग कर निष्ठा का समावेष करो। अपने संदेहों पर अविश्वास करो और अपने विश्वास पर संदेह करो। जीवन एक पहेली के हल करने जैसा है न कि समस्या का समाधान करने जैसा। मुझ पर विश्वास करो। जीवन एक मुस्कान है जो मुस्कुरा कर ही जी सकते हैं।

Wednesday, September 17, 2008

तुझे सूरज कहूं या चंदा, तुझे दीप कहूं या तारा

मेरे बच्चे , मेरे प्यारे बेटे , आज में तुम्हारे कमरे में चुपके से आ हूँ और तुम अपने बिस्तर पर मज़े से सो रहे हो और में ये तुम्हारी छवि देख कर भावविभोर हो रहा हूँ. तुम्हारा प्यारा सा मुखडा और उस पर घिरे तुम्हारे काले बाल ऐसे लग रहे है जैसे चन्द्रमा पर एक नन्हा सा बादल अठखेलियाँ कर रहा है. तुम निद्रा में मंद मंद मुस्करा रहे हो शायद किसी अप्सरा कई साथ कोई बालसुलभ खेल खेल रहे हो.
कुछ पल पहले में अपने कमरे में दफ्तर का काम देख रहा था और आज दिन भर की भाग दौड़ को याद करके में कुछ पलों के लिए हताश सा हो गया था और अपने काम पर ध्यान केन्द्रित न कर सका और चुपके से यहाँ तुम्हारे कमरे में तुमसे कुछ मौन वार्तालाप करने चला आया , मौन इस लिए क्योंकि तुम मीठी नींद में हो.

आज सुबह नाश्ते के समय में में तुम पर बरस पड़ा था क्योंकि तुम हर कम में समय लगा रहे थे , शोचालय में , स्कूल की तयारी में और नाश्ता करने में आज फ़िर तुमने सब्जी से अपनी कमीज़ ख़राब कर दी और मेने तुम्हारी और गुस्से से देख कर कहा "फ़िर से" और तुमने बिना मेरी और देखे चुपके से "बाय पापा " कहा और स्कूल के लिए भागे .

आज जब दोपहर में जब में ऑफिस से घर जल्दी आ गया था और कुछ ज़रूरी फ़ोन कर रहा था , तुम अपनी कमरे में ज़ोर ज़ोर से घ रहे थे और सरे खिलोने कमरे में फेला कर मस्ती कर रहे थे और मैने घुस्से में आकर तुम्हे हुडदंग मचने से मना कर दिया और फिर एक के बाद दूसरा आर दूसरे के बाद तीसरा फ़ोन करता ही गया और समय कैसे गुज़र गया पता ही नही चला. " स्कूल का कम अभी ख़तम करो सारा दिन हुल्लड़बाजी में निकाल देते हो" में किसी फोजी जनरल की तरह चिलाया " और सुनो, समय बेकार मत जाया करो , निकम्मे कही के" " जी पापा" तुमने अनमने दंग से कहा और फिर तुम तन्मयता से अपनी कम में लग गए और तुम्हारे कमरे की खिलखिलाती चिलपों एक अजीब से खामोशी में बदल गई.

शाम को जब में फिर अपने कमरे में कंप्यूटर पर रोज़ की तरह सर खपा रहा था , तुम मेरे पास आए और बोले," पापा आज रात क्या आप मुझे कहानी सुनायेगे ? तुम्हारे आँखों में एक आशा की किरण थी जो मेरे यह कहते ही बुज गई ," नही आज रत तो बिल्कुल नही, मैं कितना व्यस्त हूँ" और फिर खीज कर मेने चिला कर कहा," तुमने अपना कमरा देखा है, उफ़ कितना गन्दा लग रहा है, जानवर भी जहाँ रहता है, सफाई रखता है और तुम इन्सान के बच्चे हो कर भी गंदगी फेह्लाते हो,जाओ पहले अपना कमरा साफ करो" तुम बिना कुछ कहे चुपचाप सर झुका कर अपनी कमरे की तरफ़ बढ़ गए .

कुछ समय बाद तुम फिर मेरे कमरे में आए और दरवाज़े के छोर पर खडे हो गए , खीज भरी आवाज़ में में फट पड़ा " अब तुम्हे क्या चाहिए , जानते नही रत के साडे नौ बजे है , यह तुम्हारे सोने का टाइम है" तुम बिना कुछ कहे जल्दी से आगे बड़े और दौड़ कर अपनी नन्ही बाहें मेरे गले में दल दी और एक चुम्बन मेरे खुरदुरे घाल पर रसीद कर दिया और फुसफुसाहट में मेरे कान में कहा ," आय लव यू पापा" और यह कह कर हवा के झोंके की तरह जैसे तुम कमरे मैं आए थे वैसे ही हवा के झोंके की तरह तुम वहां से चले गए.

उस के बाद ,में कुछ कर नही पाया और काफी देर तक में सिर्फ़ कंप्यूटर स्क्रीन पर टकटकी लगा कर देखता रहा , आत्मग्लानी का भावः मुझे सालता रहा और में इस सोंच में डूब घ्य की कब में जीवन रूपी गाने के सुर से भटक गया और किस कीमत पर . तुमने तो कुछ भी नही किया था की में तुम पर एक नही कई बार गुस्सा हुवा , किस की भड़ास में किस पर निकल रहा था तुम तो अपने बालसुलब व्यव्हार में अपने होने का एहसास दिला रहे थे कि तुम बडे हो रहे हो और जीवन को समझने की कोशिश कर रहे थे . में ही आज भटक गया था , व्यसक संसार की उलझनों में मै ख़ुद एक उलझन बन कर रह गया था और मेरे पास खीज के सिवा कुछ भी नही था. पर आज तुमने मुझे अपनी मधुरता से ऐसा सबक सिखा दिया है जो मुझे जीवन भात नही भूलेगा . आज एक नन्हा बालक एक व्यसक पुरूष का गुरु बन गया और सिखा गया कि प्यार शर्तों का मोहताज नही है प्यार सिर्फ़ प्यार होता है , तुम्हारे नन्हे होंठों का प्यारा चुम्बन इस बात का एहसास दिला गया कि सच्चा प्यार दिल में कोई मलिनता नही रहने देता , में शर्मिंदा हूँ कि सारा दिन मेरी झिडकियां सुनने के बाद भी तुम सामने आए और अपने प्यार को प्रकट किया.

और तुम्हे सोता देख कर में चाहता हूँ कि समय के पहिये को काश पीछे धकेल सकता .और एक अच्छा पिता ही नही एक अच्छा दोस्त बन कर दिखा सकता . पर मेरे बेटे में शपथ लेता हूँ कि कल वैसा ही प्रेम करूंगा जैसा आज तुमने मुझे सिखाया ताकि में एक अच पिता बन जाऊं जब तुम कल नींद से उठो तो तुम्हारी जैसी निश्छल मधुर मुस्कराहट से में तुम्हे जगाऊँ . तुम्हारे स्कूल से वापस आने पर तुम्हारी पीठ थपथपाऊँ और रात्रि में न सिर्फ़ एक नई कहानी सुनाऊ पर थपकियाँ देकर कोई लोरी भी सुनाऊँ. तुम्हारे साथ बच्चा बनकर तुम्हारे साथ हर उस छोटी चीज़ पर खिल्खिलऊँ जो तुम्हे हंसती हो , तितली के पंख टूटने पर तुम्हारी तरह आंसूं बहाऊँ .में अपनी आप को हर समय समजाऊँ कि तुम सिर्फ़ एक नन्हे बालक हो , मेरी तरह व्यसक नही और इस सचाई के अन्तर ज्ञान से में तुम्हारा पिता होकर हर पल का भरपूर आनंद उठा सकूं . तुम्हारे भोलेपन ने आज मेरी आत्मा तक को छू लिया है और इसी लिए रात के इस पहर को में तुमसे मिलने चला आया ताकि में तुम्हारा धन्यवाद कर सकूं मेरे बच्चे मेरे गुरु मेरे दोस्त तुम्हारे अनमोल प्रेम, के लिए.