Wednesday, September 17, 2008

तुझे सूरज कहूं या चंदा, तुझे दीप कहूं या तारा

मेरे बच्चे , मेरे प्यारे बेटे , आज में तुम्हारे कमरे में चुपके से आ हूँ और तुम अपने बिस्तर पर मज़े से सो रहे हो और में ये तुम्हारी छवि देख कर भावविभोर हो रहा हूँ. तुम्हारा प्यारा सा मुखडा और उस पर घिरे तुम्हारे काले बाल ऐसे लग रहे है जैसे चन्द्रमा पर एक नन्हा सा बादल अठखेलियाँ कर रहा है. तुम निद्रा में मंद मंद मुस्करा रहे हो शायद किसी अप्सरा कई साथ कोई बालसुलभ खेल खेल रहे हो.
कुछ पल पहले में अपने कमरे में दफ्तर का काम देख रहा था और आज दिन भर की भाग दौड़ को याद करके में कुछ पलों के लिए हताश सा हो गया था और अपने काम पर ध्यान केन्द्रित न कर सका और चुपके से यहाँ तुम्हारे कमरे में तुमसे कुछ मौन वार्तालाप करने चला आया , मौन इस लिए क्योंकि तुम मीठी नींद में हो.

आज सुबह नाश्ते के समय में में तुम पर बरस पड़ा था क्योंकि तुम हर कम में समय लगा रहे थे , शोचालय में , स्कूल की तयारी में और नाश्ता करने में आज फ़िर तुमने सब्जी से अपनी कमीज़ ख़राब कर दी और मेने तुम्हारी और गुस्से से देख कर कहा "फ़िर से" और तुमने बिना मेरी और देखे चुपके से "बाय पापा " कहा और स्कूल के लिए भागे .

आज जब दोपहर में जब में ऑफिस से घर जल्दी आ गया था और कुछ ज़रूरी फ़ोन कर रहा था , तुम अपनी कमरे में ज़ोर ज़ोर से घ रहे थे और सरे खिलोने कमरे में फेला कर मस्ती कर रहे थे और मैने घुस्से में आकर तुम्हे हुडदंग मचने से मना कर दिया और फिर एक के बाद दूसरा आर दूसरे के बाद तीसरा फ़ोन करता ही गया और समय कैसे गुज़र गया पता ही नही चला. " स्कूल का कम अभी ख़तम करो सारा दिन हुल्लड़बाजी में निकाल देते हो" में किसी फोजी जनरल की तरह चिलाया " और सुनो, समय बेकार मत जाया करो , निकम्मे कही के" " जी पापा" तुमने अनमने दंग से कहा और फिर तुम तन्मयता से अपनी कम में लग गए और तुम्हारे कमरे की खिलखिलाती चिलपों एक अजीब से खामोशी में बदल गई.

शाम को जब में फिर अपने कमरे में कंप्यूटर पर रोज़ की तरह सर खपा रहा था , तुम मेरे पास आए और बोले," पापा आज रात क्या आप मुझे कहानी सुनायेगे ? तुम्हारे आँखों में एक आशा की किरण थी जो मेरे यह कहते ही बुज गई ," नही आज रत तो बिल्कुल नही, मैं कितना व्यस्त हूँ" और फिर खीज कर मेने चिला कर कहा," तुमने अपना कमरा देखा है, उफ़ कितना गन्दा लग रहा है, जानवर भी जहाँ रहता है, सफाई रखता है और तुम इन्सान के बच्चे हो कर भी गंदगी फेह्लाते हो,जाओ पहले अपना कमरा साफ करो" तुम बिना कुछ कहे चुपचाप सर झुका कर अपनी कमरे की तरफ़ बढ़ गए .

कुछ समय बाद तुम फिर मेरे कमरे में आए और दरवाज़े के छोर पर खडे हो गए , खीज भरी आवाज़ में में फट पड़ा " अब तुम्हे क्या चाहिए , जानते नही रत के साडे नौ बजे है , यह तुम्हारे सोने का टाइम है" तुम बिना कुछ कहे जल्दी से आगे बड़े और दौड़ कर अपनी नन्ही बाहें मेरे गले में दल दी और एक चुम्बन मेरे खुरदुरे घाल पर रसीद कर दिया और फुसफुसाहट में मेरे कान में कहा ," आय लव यू पापा" और यह कह कर हवा के झोंके की तरह जैसे तुम कमरे मैं आए थे वैसे ही हवा के झोंके की तरह तुम वहां से चले गए.

उस के बाद ,में कुछ कर नही पाया और काफी देर तक में सिर्फ़ कंप्यूटर स्क्रीन पर टकटकी लगा कर देखता रहा , आत्मग्लानी का भावः मुझे सालता रहा और में इस सोंच में डूब घ्य की कब में जीवन रूपी गाने के सुर से भटक गया और किस कीमत पर . तुमने तो कुछ भी नही किया था की में तुम पर एक नही कई बार गुस्सा हुवा , किस की भड़ास में किस पर निकल रहा था तुम तो अपने बालसुलब व्यव्हार में अपने होने का एहसास दिला रहे थे कि तुम बडे हो रहे हो और जीवन को समझने की कोशिश कर रहे थे . में ही आज भटक गया था , व्यसक संसार की उलझनों में मै ख़ुद एक उलझन बन कर रह गया था और मेरे पास खीज के सिवा कुछ भी नही था. पर आज तुमने मुझे अपनी मधुरता से ऐसा सबक सिखा दिया है जो मुझे जीवन भात नही भूलेगा . आज एक नन्हा बालक एक व्यसक पुरूष का गुरु बन गया और सिखा गया कि प्यार शर्तों का मोहताज नही है प्यार सिर्फ़ प्यार होता है , तुम्हारे नन्हे होंठों का प्यारा चुम्बन इस बात का एहसास दिला गया कि सच्चा प्यार दिल में कोई मलिनता नही रहने देता , में शर्मिंदा हूँ कि सारा दिन मेरी झिडकियां सुनने के बाद भी तुम सामने आए और अपने प्यार को प्रकट किया.

और तुम्हे सोता देख कर में चाहता हूँ कि समय के पहिये को काश पीछे धकेल सकता .और एक अच्छा पिता ही नही एक अच्छा दोस्त बन कर दिखा सकता . पर मेरे बेटे में शपथ लेता हूँ कि कल वैसा ही प्रेम करूंगा जैसा आज तुमने मुझे सिखाया ताकि में एक अच पिता बन जाऊं जब तुम कल नींद से उठो तो तुम्हारी जैसी निश्छल मधुर मुस्कराहट से में तुम्हे जगाऊँ . तुम्हारे स्कूल से वापस आने पर तुम्हारी पीठ थपथपाऊँ और रात्रि में न सिर्फ़ एक नई कहानी सुनाऊ पर थपकियाँ देकर कोई लोरी भी सुनाऊँ. तुम्हारे साथ बच्चा बनकर तुम्हारे साथ हर उस छोटी चीज़ पर खिल्खिलऊँ जो तुम्हे हंसती हो , तितली के पंख टूटने पर तुम्हारी तरह आंसूं बहाऊँ .में अपनी आप को हर समय समजाऊँ कि तुम सिर्फ़ एक नन्हे बालक हो , मेरी तरह व्यसक नही और इस सचाई के अन्तर ज्ञान से में तुम्हारा पिता होकर हर पल का भरपूर आनंद उठा सकूं . तुम्हारे भोलेपन ने आज मेरी आत्मा तक को छू लिया है और इसी लिए रात के इस पहर को में तुमसे मिलने चला आया ताकि में तुम्हारा धन्यवाद कर सकूं मेरे बच्चे मेरे गुरु मेरे दोस्त तुम्हारे अनमोल प्रेम, के लिए.

2 comments:

Unknown said...

Mujhe shabd nahi mil rahe ki kya likhun....itna dil ko choone wala lekh hai...kitna sach,kitna saccha.Hum duniya ko sudharne ki baat karte hain,apne bachon ko discipline mein dalne ki baat karte hain,par kahin na kahin is sab mein hum unke dil ko kitni baar thes pohanchate hain. Bachon ki chavijaise ek picture ki tarah different wakiye lekar aankhon ke samne se nikal gayi.Yaad aaya ki shivi se kahin zyada badd kar tum apne samay mein chanchal they ,magar shayad hamare maa baap itni gehrayee se kabhinahi sochte they.har umar apni pehchan mangti hai...jo harkatein bache abhi karte hain ..kuch salon baad hum unki inhi baton ko lekar yaar karke taras jayenge. Hum bahut naseeb walen hain ki hamare paas hamare bachon ke kuch aur hi anmol saal hain jab woh hum se bahut nazdeeki se judey hain....unki sharartein dekhne ko milti hain,unki kilkariyan,unka shor kanon mein goonjta hai...jisko sunke kabhi hamare kaan fat jate hain,ya humein bahut zor ka gussa aata hai...magar socho kuch aur saal jab woh badey ho jayenge...pani duniya mein busy ho jayenge...unka hum se bi alag ek circle banega jahan woh apna time guzarna chahenge...tab hum unke maa baap unke usi shor ke liye taras jayenge. Ghar ki deewaren khalipan ka ehsas dilayengi,saaf kamre aur sofa bi silvaton ke bina milega aur hum chup chap chai ka cup liye TV ke channels badalte rahenge. Bhai, i feel so touched with this blog of yours and i promise today that for my Aaku i will be doing all those stupid acts,bachpan ki cheezen jo use enjoyment deti hain....she will be more close to me. She will seea friend in me....apni dinchariya mein bahut vyastta hai...aur mein bahut baar itna sara kaam karte karte thak bi jati huun....bahgut gussa aur kheej bi aaati hai and usually daant ke use bhaga bi deti huun. Wapsi mein uska reaction mujhe aur naraz kar deta hai aur mein use uska Indiscipline ka naam deke usko aur iritate karti huun. Shayad kahin na kahin mein bi bool gayi huun ki aaku ki inhi actions ke liye mein bahut aanson bahati thi..tarasti thi ki kab woh bi yeh sab kare. Hum log kitni baar bilkul jangli se ban jate hain...unke masoom dil ko thes pohanchate hain.
Thanks bhai mere andhar ki mamtamayi maa ko jaghane ke liye...
HAMARE BACCHE SAB SE ANMOL HAIN.....HAMARE JEEVAN KI MUSKAN HAIN.BAS WOH THEEK RAHEN,ZINDA RAHEN...HAMARE GHAR KO APNI HANSI SE AABAD KARTE RAHEN.

मीनाक्षी said...

पहली पोस्ट नन्हे मासूम बच्चों के नाम.....बहुत बहुत अच्छा लगा..दिल की बात को दिल की गहराइयों से महसूस करके लिखा गया है....वन्दना की टिप्पणी ने भी प्रभावित किया.. .मेरी ढेर सारी शुभकामनाएँ