Wednesday, July 1, 2009

हर माँ की नसीहत अपने बेटे से................सिर्फ वक़्त वक़्त की बात है .......

वर्ष १९६० ................... माँ बेटे से,"बेटा , अपनी जात की ही लड़की से शादी करना!"

वर्ष १९७० ...........................माँ बेटे से, "बेटा,अपने धरम की ही लड़की से शादी करना!"

वर्ष १९८० ..........................माँ बेटे से,"बेटा अपने लेवल की लड़की से शादी करना!"

वर्ष १९९० ........................माँ बेटे से, "बेटा अपने देश की लड़की से ही शादी करना!"

वर्ष २००० .........................माँ बेटे से, "बेटा अपनी उम्र की लड़की से ही शादी करना!"

वर्ष २००९ ......................... माँ बेटे से, "बेटा कोई भी हो, पर लड़की से ही शादी करना!"

Monday, May 18, 2009

एक कहानी

एक दिन एक किसान का गधा एक कुएँ में गिर गया! बेचारा बहुत देर तक चिल्लाता रहा और किसान इस कशमकश में फंसा रहा की गधे को कुएँ में से कैसे निकला जाये.आखिरकार किसान इस निष्कर्ष पर पहुंचा की उसका गधा वैसे ही काफी बूडा हो गया है और उतना कम का नहीं रहा और अपने सूखे कुएँ को पाटने का ख्याल भी उसे काफी दिनों से आ रहा था. गधे को कुएँ से निकलना उसे दुष्कर ही नहीं फजूल ही लगा.

अपनी मदद के लिए उसने अपने पड़ोसियों को आमंत्रित किया और सिथति को समझाने के बाद उसने सब को एक एक फावड़ा पकड़ाया और सब मिलकर सूखे कुएँ को मिटटी से पाटने लगे . अपने ऊपर मिटटी गिरती देख पहले तो गधा अचंभित हुवा और सिथति समझ कर जोर जोर से चिल्लाने लगा! फिर एकदम सब को विस्मित करता हुवा गधा ज़मीन पर बैठ गया! इस बीच काफी मिटटी कुएँ में दल चुकी थी और किसान ने नीचे झांक कर देखा और जो उसने देखा , वह आश्चर्यचकित होकर रह गया ! हर बार जब कोई कुदाल भर मिटटी निचे झोंक रहा था , गधा मिटटी हो अपने शरीर से झटक कर ऊपर आने के लिए कदम बड़ा रहा था.इस तारा किसान और उसके पडोसी जैसे जैसे नीचे मिटटी फेंक रहे थे , वैसे वैसे गधा एक एक कदम ऊपर की और बड़ा रहा था.शीघ्र ही सब को अचंभित करता हुवा गधा सूखे कुएँ की मुंडेर लांग कर भाग गया !!!

सारांश :-

जीवन रुपी मार्ग पर हर तरह के लोग मिलेंगे और अधिकतर लोग मिटटी ही फेंकेंगे , हर तरह की बाधाएं, झूठ,निराशा, चतुरता इस में है की की हम इस मिटटी रुपी भादाओ को कैसे झटक कर असफलता के कुएँ से बहार आये. जीवन की भादाओ को सीडी बना कर सफलता को घाले लगाये!! हम गहेरे से गहेरे कुएँ से सिर्फ तब बहार आ सकते है जब हमारी इच्छा सती सुद्रढ़ हो और कभी हार न माने, असफलताओ को झटक कर कदम आगे बढाये!!

जीवन में सदेव प्रसन्न रहने के पांच साधारण नियम याद रखे :-

1. अपने ह्रदय को सदेव नफरत से मुक्त रखे, याद रहे , क्षमा दान सबसे बड़ा दान है !

2. अपने मन में चिन्ताओ को कभी पनपने न दे , चिंता चिता सामान !

3. साधारण जीवन जियो और जो तुम्हारे पास है उसी में संतुष्ट रहो !

4. इस बात का संताप न करो की मुझे क्या मिला है, इस बात का चिंतन करो की मैंने क्या अर्पण किया है!

5. दूसरों से कम अपेक्षा करें पर अपने इश्वर से अधिक!

Friday, January 30, 2009

तुम मेरे लिए क्या हो?

तुम नहीं जानते प्रिये तुम मेरे लिए क्या हो
तपती धरती पर जल की फुहार हो,
दुखियारे मन की तरसती गुहार हो।
आकाश मे उड़ते पंछी की स्वछन्द उड़ान हो,
नन्हें बालक के होंठो की मीठी मुसकान हो।
तुम नहीं जानते प्रिये तुम मेरे लिए क्या हो ........।।

मेरी कल्पनाओं से परे मेरे दिल का करार हो,
तुम ही तो मेरे बचपन का प्यार हो।
प्यार व ममता की जीती जागती मूरत हो,
इस बैरी जग में तुम ही मेरी जरूरत हो।
त्याग सरलता सहिष्णुता श्रद्धा की पहचान हो
मेरे लिए तो तुम ही भगवान हो।
तुम नहीं जानते प्रिये तुम मेरे लिए क्या हो ........।।

मेरी आन हो, मेरी शान हो,
मेरी धरती के तुम ही आसमान हो
मदमस्त पवन हो, मुस्कुराता आकाश हो,
मेरे अंधियारे जीवन का दिव्य प्रकाश हो।
मेरे जीवन की बस तुमही एक आश हो,
तुम नहीं जानते प्रिये तुम मेरे लिए क्या हो ........।।

Saturday, January 24, 2009

फूल और माली

कुछ दिनों में मुझे कनाडा आए एक साल पूरा हो जाएगा , पिछले साल जनवरी मे, मैं सपरिवार इंडिया में था, कनाडा गमन होने वाला था इस लिए माँ डैड से मिलने इंडिया गया था, कोई नई बात तो बिल्कुल नही थी , १९९२ से में विदेश में हूँ और हर साल इंडिया चक्कर तो लगता ही था और हर बार वापसी पर माँ कितने आंसू बहाती थी पर इस बार के आंसुओं ने सारे बाँध तोड़ दिए, आंसुओँ को भी शायद पता चल चुका था की जाने वाला एक नही दो नही पूरे सात समुद्र पार जाने वाला है!

आज माँ की बहुत याद आ रही थी इस लिए मैंने माँ और डैड को इंडिया फ़ोन किया, कनाडा से समय अन्तर के कारण शायद अभी सुर्योधय भी नही हुवा हो, तभी माँ की आवाज़ निन्ध्याई सी लगी ! माँ से बात करते करते में कही खो सा गया! माँ को मेरे जनम से ही आदि सीरी यानि माइग्रेन की शिकायत रही है और बाप रे जब माइग्रेन का दर्द माँ को होता था तब सिर्फ़ एक ही चीज़ उन्हें आराम पहुंचाती थी और वोह था सर पर कास कर चुन्नी या दुपट्टा बाँध कर सो जाना और उस समय में और मेरी बहने इस बात का खास ख्याल रखती थी की हम बिल्कुल शोर न करें ताकि माँ ठीक हो कर हमेशा की तरह हमारे साथ बेठे , बात करे, हँसे मुस्कराए और मुझे बचपन से ही उन्हें कभी कभी सोते मै निहारने की आदत पड़ गई थी!

क्या आपने कभी अपने माता पिता को सोते निहारा है? मेने बहुत सालों के बाद पिछली छुट्टियों मै माँ और पिताजी को सोते देखा! फ़ोन पर बात करते करते करते मुझे याद आया! डैड का स्वस्थ बलिष्ठ शरीर अब कमज़ोर और छोटा दिख रहा था, उनके काले घुंगराले बाल अब बेढब सफेदी लिए हुवे सूखे और बेजान लग रहे थे! झुरियों के झुंड के पीछे में अपने सुंदर माता पिता को ढूँढ रहा था!

इस पुरूष ने रात दिन एक कर के और अपने सपनो की होली जला के अपने बच्चों की हर खुशी पूरी की! उनकी हर खुशी में उनके साथ खुश हुवा और उनके छोटे से दर्द से ख़ुद दर्द का एहसास किया और इस बात की पूरी कोशिश की की उसके बच्चे जीवन में सिर्फ़ सफल ही नही एक अच्छे मनुष्य भी बने.

और माँ का तो क्या कहना, जिसके कोमल होंठों ने लोरियां गा कर सुनाई , जिसने ख़ुद घीले मै सोकर हमें सूखे पर अपने कोमल हाथों ने थपकियाँ दे कर सुलाया आज वही कोमल हाथ व्रध अवस्था में सूख चुकें है, नीली नीली रगे हथेली पर साफ दिख रही है और गुज़रे दिनों का परिश्रम याद दिला रही है. इस नारी ने हमें अपनी कोख मै सहेजा और हर पीड़ा सह कर हमें जनम दिया और फिर कभी प्यार से तो कभी मार से हमें जीवन का हर वह पाठ पढाया जो हमें आज तक नेक राह पर बढने को हमेशा प्रेरित करता है.बचपन में हुई पिटाई अब अमर्त तुल्य लग रही है पर तब कितना गुस्सा आता था.

व्यसक होने पार सोते हुवे माँ पिता हो निहारने का या तो समय नही मिला या आधुनिक जीवन की अंधी दौड़ में हम कुछ ज़्यादा ही आगे निकल चुके हैं पर पिछली बार देखा तो अन्दर से कुछ हिल सा गया ,लगा आत्मबोध हो गया हो! माँ को देख कर अब लगता है की एक समय की बलवती नारी अब निर्बल हो चली है....भंडार घर से माँ की आवाज़ आई की चावल का कनस्तर उठाने में उन्हें मदद चाहिए , क्या ये ही वही मेरी माँ है जो सारा दिन काम कर के भी कभी थकती नही थी और वही मेरे प्यारे डैड जो मुझे घंटो कंधे पर बिठा कर रावन दहन दिखाते थे...आज थोड़े काम से थक जाते है.

निष्ठुर सत्य तो यही है की हमारे माता पिता अब व्रध हो चले है....... उनकी आयु बड रही है जैसे मेरी आयु बढ रही है , फर्क सिर्फ़ इतना है की में अपने बढ़िया वर्षों की और युवा अवस्था की और अग्रसर हूँ और वोह दिन भ दिन म्रियमाण अवस्था की और अग्रसर हो रहे है , समय का पहिया पूरा चक्र पूरा कर के वापस समय को उसी दुरी पर विपरीत दशा में गुमा रहा है! कल का माली अब ख़ुद फूल बन चुका है और उसे उसी प्यार व दुलार की ज़रूरत है जो वोह अपनी बगिया के पुष्पों पर लुटा चुका है और कल का फूल आज अपने माली के प्यार दुलार को लौटने के लिए तत्पर होना चाहिए!! सच है...मंच वही है पात्र बदल गए है....

पर कही नए माली ने नए चमन की तलाश में अपनी पुराणी बगिया का परित्याग तो नही किया है? उन सूखते हुवे फूलों का क्या होगा जिन्होंने कभी ख़ुद माली बन कर हमें सींचा था? यह सोंच कर की मै भी उसी अंधी दौड़ का हिसा हूँ, मेरा मन आत्म गलानी से भर गया!! हर कोई येही सोंचता है दूर सही पर साथ तो हमेशा रहेगा पर सच तो ये है की हम सुब नाशवर है और जितना समय हम साथ बिता सकते है उतना अछा है.

Tuesday, January 20, 2009

" वक्त नही"

हर खुशी है लोगों के दामन मैं, पर एक हंसी के लिए वक्त नही!
दिन रात दोड़ती दुनिया मैं , जिंदगी के लिए ही वक्त नही!!

माँ की लोरी का एहसास तो है , पर माँ को माँ कहने का वक्त नही!
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके , अब उन्हें दफ़नाने का भी वक्त नही!!

सारे नाम मोबाइल मैं हैं , पर दोस्ती के लिए वक्त नही!
गैरों की क्या बात करें , जब अपनों के लिए ही वक्त नही!!

आंखों में है नींद बड़ी , पर सोने का वक्त नही!
दिल है ग़मों से भरा हुआ , पर रोने का भी वक्त नही!!

पैसों की दौड़ में ऐसे दौडे , की थकने का भी वक्त नही!
पराये एहसासों की क्या कद्र करें , जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही!!

तू ही बता ऐ जिंदगी , इस जिंदगी का क्या होगा?
हर पल मरने वालों को , जीने के लिए भी वक्त नही .........