Saturday, January 24, 2009

फूल और माली

कुछ दिनों में मुझे कनाडा आए एक साल पूरा हो जाएगा , पिछले साल जनवरी मे, मैं सपरिवार इंडिया में था, कनाडा गमन होने वाला था इस लिए माँ डैड से मिलने इंडिया गया था, कोई नई बात तो बिल्कुल नही थी , १९९२ से में विदेश में हूँ और हर साल इंडिया चक्कर तो लगता ही था और हर बार वापसी पर माँ कितने आंसू बहाती थी पर इस बार के आंसुओं ने सारे बाँध तोड़ दिए, आंसुओँ को भी शायद पता चल चुका था की जाने वाला एक नही दो नही पूरे सात समुद्र पार जाने वाला है!

आज माँ की बहुत याद आ रही थी इस लिए मैंने माँ और डैड को इंडिया फ़ोन किया, कनाडा से समय अन्तर के कारण शायद अभी सुर्योधय भी नही हुवा हो, तभी माँ की आवाज़ निन्ध्याई सी लगी ! माँ से बात करते करते में कही खो सा गया! माँ को मेरे जनम से ही आदि सीरी यानि माइग्रेन की शिकायत रही है और बाप रे जब माइग्रेन का दर्द माँ को होता था तब सिर्फ़ एक ही चीज़ उन्हें आराम पहुंचाती थी और वोह था सर पर कास कर चुन्नी या दुपट्टा बाँध कर सो जाना और उस समय में और मेरी बहने इस बात का खास ख्याल रखती थी की हम बिल्कुल शोर न करें ताकि माँ ठीक हो कर हमेशा की तरह हमारे साथ बेठे , बात करे, हँसे मुस्कराए और मुझे बचपन से ही उन्हें कभी कभी सोते मै निहारने की आदत पड़ गई थी!

क्या आपने कभी अपने माता पिता को सोते निहारा है? मेने बहुत सालों के बाद पिछली छुट्टियों मै माँ और पिताजी को सोते देखा! फ़ोन पर बात करते करते करते मुझे याद आया! डैड का स्वस्थ बलिष्ठ शरीर अब कमज़ोर और छोटा दिख रहा था, उनके काले घुंगराले बाल अब बेढब सफेदी लिए हुवे सूखे और बेजान लग रहे थे! झुरियों के झुंड के पीछे में अपने सुंदर माता पिता को ढूँढ रहा था!

इस पुरूष ने रात दिन एक कर के और अपने सपनो की होली जला के अपने बच्चों की हर खुशी पूरी की! उनकी हर खुशी में उनके साथ खुश हुवा और उनके छोटे से दर्द से ख़ुद दर्द का एहसास किया और इस बात की पूरी कोशिश की की उसके बच्चे जीवन में सिर्फ़ सफल ही नही एक अच्छे मनुष्य भी बने.

और माँ का तो क्या कहना, जिसके कोमल होंठों ने लोरियां गा कर सुनाई , जिसने ख़ुद घीले मै सोकर हमें सूखे पर अपने कोमल हाथों ने थपकियाँ दे कर सुलाया आज वही कोमल हाथ व्रध अवस्था में सूख चुकें है, नीली नीली रगे हथेली पर साफ दिख रही है और गुज़रे दिनों का परिश्रम याद दिला रही है. इस नारी ने हमें अपनी कोख मै सहेजा और हर पीड़ा सह कर हमें जनम दिया और फिर कभी प्यार से तो कभी मार से हमें जीवन का हर वह पाठ पढाया जो हमें आज तक नेक राह पर बढने को हमेशा प्रेरित करता है.बचपन में हुई पिटाई अब अमर्त तुल्य लग रही है पर तब कितना गुस्सा आता था.

व्यसक होने पार सोते हुवे माँ पिता हो निहारने का या तो समय नही मिला या आधुनिक जीवन की अंधी दौड़ में हम कुछ ज़्यादा ही आगे निकल चुके हैं पर पिछली बार देखा तो अन्दर से कुछ हिल सा गया ,लगा आत्मबोध हो गया हो! माँ को देख कर अब लगता है की एक समय की बलवती नारी अब निर्बल हो चली है....भंडार घर से माँ की आवाज़ आई की चावल का कनस्तर उठाने में उन्हें मदद चाहिए , क्या ये ही वही मेरी माँ है जो सारा दिन काम कर के भी कभी थकती नही थी और वही मेरे प्यारे डैड जो मुझे घंटो कंधे पर बिठा कर रावन दहन दिखाते थे...आज थोड़े काम से थक जाते है.

निष्ठुर सत्य तो यही है की हमारे माता पिता अब व्रध हो चले है....... उनकी आयु बड रही है जैसे मेरी आयु बढ रही है , फर्क सिर्फ़ इतना है की में अपने बढ़िया वर्षों की और युवा अवस्था की और अग्रसर हूँ और वोह दिन भ दिन म्रियमाण अवस्था की और अग्रसर हो रहे है , समय का पहिया पूरा चक्र पूरा कर के वापस समय को उसी दुरी पर विपरीत दशा में गुमा रहा है! कल का माली अब ख़ुद फूल बन चुका है और उसे उसी प्यार व दुलार की ज़रूरत है जो वोह अपनी बगिया के पुष्पों पर लुटा चुका है और कल का फूल आज अपने माली के प्यार दुलार को लौटने के लिए तत्पर होना चाहिए!! सच है...मंच वही है पात्र बदल गए है....

पर कही नए माली ने नए चमन की तलाश में अपनी पुराणी बगिया का परित्याग तो नही किया है? उन सूखते हुवे फूलों का क्या होगा जिन्होंने कभी ख़ुद माली बन कर हमें सींचा था? यह सोंच कर की मै भी उसी अंधी दौड़ का हिसा हूँ, मेरा मन आत्म गलानी से भर गया!! हर कोई येही सोंचता है दूर सही पर साथ तो हमेशा रहेगा पर सच तो ये है की हम सुब नाशवर है और जितना समय हम साथ बिता सकते है उतना अछा है.

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